मर्जी के मालिक



गीत -उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

सब अपनी मर्जी के मालिक, बात हमारी कौन सुने।
छोटा हो या बड़ा नाग, बस डसने को वह हमें चुने।।

मची हुई है अफरा-तफरी,
कुटिल स्वार्थ में डूबी नगरी।        
 मुखड़ा सना दूध में लेकिन;
जहरीली है अंदर गगरी।।

सफल पुजारी वही यहाँ का, तिकड़़म का जो जाल बुने।
सज्जनता का दंड समेटे, असफलता सिर खूब धुने।।
सब अपनी मर्जी के मालिक....

अवसरवाद यहाँ है चलता,
अपना ही अपनों को छलता।
बहती- गंगा हाथ धो लिए;
मानव वही फूलता- फलता

आज अनैतिकता के हाथों, पाप हो रहे कई गुने।
कल तक जो अच्छे लगते थे, गेहूँ सारे आज घुने।।
सब अपनी मर्जी के मालिक....

हुई आस्था गूँगी- बहरी,
निष्ठा भी फिर यहाँ न ठहरी।
खलने लगा अकेलापन भी;
बढ़ती रही वेदना गहरी।।

कैसे दूर हो सके पीड़ा, बैठे हैं सब जले- भुने।
मानवता हो गई खोखली, कोई खुद को नहीं हुने।।
सब अपनी मर्जी के मालिक.......

 रचनाकार -उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
'कुमुद- निवास'
बरेली (उ. प्र.)
 मोबा.-9837944187
(प्रकाशित एवं प्रसारित रचना- सर्वाधिकार सुरक्षित)

हुनना-हुने : आहुति देना- आहुति दे

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5 Comments

Ilyana

13-Oct-2022 07:32 PM

Nice

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Sachin dev

13-Oct-2022 07:32 PM

Nice 👌🏻

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Raziya bano

13-Oct-2022 09:53 AM

बहुत सुंदर प्रस्तुति

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